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Sunday 16 September 2018

वॉट्सऐप पर कोई ऐसी PDF भेजे तो क्लिक करने से पहले 100 बार सोचना

ठगी. कहीं भी, कभी भी, कैसे भी हो सकती है आपके साथ. पहले हम सुनते थे कि फलाने बस से जा रहे थे तो बगल वाले यात्री ने उनको कुछ खिला-पिला दिया. फिर फलाने बेहोश हो गए और सामने वाला सामान लेकर चंपत. इसीलिए घर वाले जब भी उनके बच्चे कहीं बाहर घूमने-फिरने जाएं तो एक वैधानिक चेतावनी जरूर देते थे – किसी का दिया कुछ मत खाना (बस-ट्रेन से हाथ बाहर न निकालने की सलाह देने के बाद). मगर अब जो नए जमाने की ठगी है, उससे बचने की तो सलाह मां-बाप के पास भी नहीं है. कभी फोन करके एटीएम कार्ड डिटेल्स पूछकर लूटा जा रहा है. कभी फेसबुक हैक कर दोस्तों से पैसे वसूले जा रहे हैं. अब नए जमाने के ठगों ने नया तरीका ढूंढा है वॉटस्ऐप के जरिए ठगी का. इसके बारे में हमें पता चला हमारे दोस्त पत्रकार कुलदीप मिश्र के जरिए. उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली है.
इसे पढ़कर आपको इस नई तरह की ठगी का तरीका. इससे बचाव के उपाय और ठग को ही धरने के साधन पता चल जाएंगे. तो दो मिनट का काम है. इसे पढ़ डालो पहलवानों, भला होगा –
सावधानी ही बचाव है.
आज मैं साइबर अपराधियों के फेंके एक जाल का शिकार होते होते बचा.
एक अनजान नंबर से मेरे पास व्हॉट्सएप पर एक मैसेज आया. भेजने वाले ने कुछ लिखा नहीं था, बस रहस्यमयी शीर्षक वाली एक पीडीएफ फाइल भेजी थी.
1. शक की शुरुआती स्टेज. अनजान आदमी सीधे एक फाइल भेज रहा है, जिसका नामकरण भी उत्सुकता बढ़ाने के मक़सद से किया गया लगता है.
मैंने फाइल डाउनलोड नहीं की. एक मिनट रुककर उसका परिचय पूछा तो उस पर तुरंत ब्लू टिक आ गया. एक मिनट से पट्ठा मेरी ही विंडो खोले बैठा था. मैं फाइल डाउनलोड करूं, शायद इसका इंतज़ार कर रहा था. लेकिन मेरे ‘Who is this?’ का उसने कोई जवाब नहीं दिया.

2. फिर मैंने उसकी डीपी देखी तो उसमें कोई चेहरा नहीं था. एक महल की जेनेरिक तस्वीर थी. नाम लिखा था- आशीष.
3. लेकिन ट्रूकॉलर ने उसका नाम बताया- सुमित. अनजान नंबर, चेहरा किसी का नहीं, दो नाम और एक रहस्यमयी पीडीएफ़ फाइल. शक पुख़्ता.
4. मैंने उसे अगला संदेश भेजा, ‘मिस्टर आशीष/सुमित, क्या पुलिस आपके पीछे है?’
5. इस पर भी तुरंत ब्लू टिक आ गया. और अगले ही सेकेंड उस नंबर पर मैसेज डिलिवर होने बंद हो गए. मैंने कॉल किया तो नंबर भी बंद है.

एक एथिकल हैकर दोस्त से पता चला कि पीडीएफ़ फाइल भी malicious और ख़तरनाक हो सकती है. बीते दिनों कुछ दोस्तों के साथ ऐसी घटनाएं हुईं थीं जब malicious लिंक्स से उनका व्हॉट्सऐप या फेसबुक अकाउंट हैक किया गया और फिर उनके दोस्तों से इनबॉक्स में पैसे मांगे गए. वजह ऐसी बताई जाती थी कि कोई दोस्त मना नहीं कर पाता था. मसलन, किसी का एक्सीडेंट या कोई एमरजेंसी.
यह घटना साझा करने का मक़सद इतना है कि आप सचेत रहें और यह भी समझें कि ऐसे फ़र्ज़ीवाड़ों से बचना मुश्किल नहीं है. पहली नज़र में जो लिंक या फाइल संदेह पैदा कर रही है तो क्लिक मत कीजिए. कोई बड़ी पड़ताल की ज़रूरत नहीं पड़ती. कॉमन सेंससे काम चल जाता है.
जी हां, एकदम सही बात बोली कुलदीप ने. कॉमन सेंस ही वो अचूक रामबाण है, जो आपको इन नए जमाने के साइबर ठगों से बचा सकता है. माने किसी अनजान नंबर से मैसेज आए तो पहले उसे थोड़ा जांच परख लो. ये नहीं कि लबर-लबर में हर लिंक को क्लिक कर डालो. बाकि और लोग बचे रहें, उसके लिए जरूरी है कि इस खबर को आग की तरह फैला दो. बाकि जो करे उसका भी भला जो न करे उसका भी भला
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